एक सूफी कहानी है… अवश्यम्भावी इच्छा story no:-3
“यदि आप कहें, ‘मुझे कुछ भी नहीं पता सिवाय इसके कि मुझे कुछ भी नहीं पता,’ तो भी आप गिर गए हैं; आपने पहले ही कुछ कह दिया है।”
एक सूफी कहानी है…
एक सूफी संत के चार शिष्यों से गुरु ने कहा, “अब समय आ गया है कि तुम पहाड़ों पर जाओ और सात दिनों के लिए मौन रहो, और फिर वापस आओ।”
वे सात दिनों के लिए पूर्ण मौन धारण करने का संकल्प लेकर गए। कुछ ही मिनटों के बाद पहले शिष्य ने कहा, “मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मैंने अपने घर को बंद किया है या नहीं।”
दूसरे ने कहा, “तुम मूर्ख हो! हम यहां मौन रहने आए हैं और तुमने बोलना शुरू कर दिया!”
तीसरे ने कहा, “तुम तो उससे भी बड़े मूर्ख हो! इससे तुम्हारा क्या लेना-देना है? यदि उसने बोला, तो कम से कम तुम तो चुप रह सकते थे!”
चौथे ने कहा, “भगवान का शुक्र है, मैं अकेला हूं जिसने अभी तक कुछ नहीं कहा!”
जब आप किसी अनुभव को महसूस करते हैं, तो उसे साझा करने की एक अवश्यम्भावी इच्छा होती है — उसे रोका नहीं जा सकता।
ओशो – ‘कम, कम, येट अगेन कम’
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